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MahaabhojMD
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नहीं चाहिए प्रभु हमें, तुम्हारी भाषा
नहीं चाहिए प्रभु हमें तुम्हारी भाषा
नहीं चाहिए।।
देश की एकता बढ़ाने के लिए कह कर
कोशिश कीजिए हम सहारा देंगे माने कहकर
हमसे नए-नए संस्थाओं को खुलवा कर
रहे हैं आप उच्च पद पर।।
हमारे ऊपर राज़ करने के लिए…
हमें नीचे गिरा के
हमें मानसिक रूप से हराने के लिए ...
तुम्हारी भाषा को हमारे ऊपर चढ़ाकर
उसकी भार ज्यादा हो गया तो भी
नीचे नहीं रखना है एवं
कुछ कमी नहीं रहना है माने
शर्त लगाते हुए
तुम्हारे मातृभाषा की बल से
हमारी मातृभाषा को भुलाने में लगे हुए हैं।
मगर एक बात याद रख सबको मातृभाषा होती है
हर मातृभाषा के अपना महत्व होता है
उसके असर हर जगह दिखाने जरुरत नहीं…
अतएव तुम्हारे मातृभाषा के महत्व अधिक दिखाने हेतु
हमारे मातृभाषा के महत्व को कम समझना मत।।
जैसे तुम लोगों को अंग्रेजी सिर्फ भाषा है ,
तेलुगु सिर्फ भाषा है, तमिल सिर्फ भाषा है
वैसे ही हमें, हिंदी भी भाषा ही है ना की ज्ञान…
भाषा को भाषा जैसा रहने दीजिए वरना
संस्कृत जैसे अपनों के घर में ही सीमित रहकर
बाद में गायब हो जाएगी।।
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