विशेष रुप से प्रदर्शित पोस्ट

मुहब्बत का अंज़ाम

 बेताबी बेचैनी को अपनाना  भीड़ में अकेला होना  अकेले में आँसू पीना  प्यार की गीतों में प्यारी नजर आना  निरुत्साह निराश में डुबे रहना  लड़कियों के प्रति नफ़रत होना  जोश मस्ती में मन नहीं लगना  आदि सभी लक्षण आ जाते हैं  अगर मुहब्बत में मन मूर्जाने तो  अतएव कम दिन के  जिंदगी को और जवानी को  प्रेम नामक अभिनय के खातिर  अपना न होने पराया के लिए  त्याग देना महान पाप है  इससे अच्छा  प्रेमनगर के द्वार को बंद करके  स्वर्गनगर के द्वार को  खोलना है उचित।।

मैं अँधेरे में था

 मैं अँधेरे में बैठा था



बंद आँखों से बैठा था

मैं सिर्फ सुन रहा था

वहाँ कुछ शोर सुन रहा था

वह मर्द और औरत की आवाजें थी, मैं जानता था

वह उसे हँसाना चाहता था

और वह कुछ कहा , वह हंसी

जब भी वह हंसती थी   

उसकी दाँतों की गर्म हवा   

मेरे बदन को छू रही थी

मैं सिर्फ सुन रहा था

मैं जानता था

यह कुछ और नहीं मेरी माँ थी

वह कुछ और नहीं मेरे पिता थे

उस अँधेरी जगह

वह जगह और कही नहीं मेरी माँ की कोख था

लेखक : यू श्रीनिवासुलु

अंग्रेजी से हिंदी अनुवादक “ मणिकांत बनागानापल्ली और मसिपोगु चिन्ना महादेवुडू ”

Edited by : ईरेल्ली उपेन्दर

टिप्पणियाँ

Mahaa bhoj ने कहा…
अति उत्तम है मणि भय्या, श्रीनिवासुलु & उपेंदर