कबीर के गुरु रामानंद थे।
रेखांकित शब्द का संधि विच्छेद विकल्पों में से पहचानकर लिखिए ।
राम + आनंद रामा +आनंद रमा +नंदा
जवाब: राम + आनंद
श्रद्धानंद- श्रद्धा +आनंद
प्रत्येक - प्रति +एक
पुरुषोत्तम- पुरुष +उत्तम
पुनरावृत्ति - पुनः +आवृत्ति
ज्योतिर्मय - ज्योतिः+मय
झंडोत्सव - झंडा +उत्सव
रुपांतर - रूप +अंतर
सर्वोत्कृष्ट- सर्व +उत्कृष्ट
रूपांतरण - रूप +अंतरण
बाह्याडंबर - बाह्य + आडंबर
निर्विकार - निः +विकार
पवन - पो +अन
धनानंद- घन +आनंद
उल्लास -उत+लास
पावन - पो+ अन
निराशा - निः +आशा
इत्यादि- इति +आदि
निराकार - नि:+ आकार
परस्परावलंब - परस्पर+ अवलंब
हिताहित - हित+अहित
फलानुसार- फल+ अनुसार
पर्यावरण- परि+आवरण
फलानुसार - फल + अनुसार
अंतरेक्य - अतः + ऐक्य
मदांध - मद + अंध
परार्थ - पर + अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय - अंतर+ राष्ट्रीय
पुस्तकालय - पुस्तक+ आलय
अलौकिक - अलोक+इक
भ्रष्टाचार - भ्रष्ट+ आचार
रूपांतरण - रूप + अंतरण
युवावस्था - युव + अवस्था
स्वागत - सु + आगत
महर्षि- महा+ ऋषि
स्वाध्याय - स्व+ अध्याय
रवींद्र - रवि+ इंद्र
गीतांजली - गीत+अंजलि
सदैव- सदा+ एव
क्षुधार्त - क्षुधा+ अर्थ
पुनरावृत्ति - पुनः+ आवृत्ति
पीतांबरा - पितृ अंबरा
संधि
संधि का शाब्दिक अर्थ है 'मेल'।
व्याकरण में, दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधि के तीन भेद होते हैं:
* स्वर संधि: (स्वर + स्वर)
जब दो स्वरों के मिलने से विकार उत्पन्न होता है, तो उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे: विद्या + आलय = विद्यालय।
* व्यंजन संधि: (व्यंजन + व्यंजन/स्वर)
जब व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होता है, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे: सत् + जन = सज्जन।
* विसर्ग संधि: (विसर्ग - स्वर / व्यंजन)
जब विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होता है, तो उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे: निः + चल = निश्चल
1. स्वर संधि (5) स्वर- स्वर = स्वर संधि
स्वर संधि का मतलब है स्वरों के मेल से होने वाला विकार।
जब दो स्वर आपस में मिलते हैं, तो उनके मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
स्वर संधि के पाँच मुख्य भेद हैं:
i.दीर्घ संधि
ii. गुण संधि
iii. यण संधि
iv. वृद्धि संधि
v. अयादि संधि
1. दीर्घ संधि: जब दो समान स्वर (ह्रस्व या दीर्घ) मिलते हैं, तो उनका दीर्घ रूप हो जाता है। जैसे:
* अ + अ = आ (धर्म + अर्थ = धर्मार्थ)
* इ + इ = ई (कवि + इंद्र = कवींद्र)
* उ + उ = ऊ (भानु + उदय = भानूदय)
2.गुण संधि: जब 'अ' या 'आ' के बाद 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' या 'ऋ' आते हैं, तो क्रमशः 'ए', 'ओ' और 'अर्' हो जाता है। जैसे:
* अ + इ = ए (सुर + इंद्र = सुरेंद्र)
* अ + उ = ओ (सूर्य + उदय = सूर्योदय)
* अ + ऋ = अर् (देव + ऋषि = देवर्षि)
3.वृद्धि संधि: जब 'अ' या 'आ' के बाद 'ए', 'ऐ', 'ओ' या 'औ' आते हैं, तो क्रमशः 'ऐ' और 'औ' हो जाता है। जैसे:
* अ + ए = ऐ (एक + एक = एकैक)
* अ + ओ = औ (परम + ओज = परमौज)
4.यण संधि: जब 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' या 'ऋ' के बाद कोई असमान स्वर आता है, तो क्रमशः 'य', 'व' और 'र' हो जाता है। जैसे:
* इ + अ = य (अति + अधिक = अत्यधिक)
* उ + अ = व (सु + आगत = स्वागत)
* ऋ + अ = र (पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा)
5.अयादि संधि: जब 'ए', 'ऐ', 'ओ' या 'औ' के बाद कोई असमान स्वर आता है, तो क्रमशः 'अय', 'आय', 'अव' और 'आव' हो जाता है। जैसे:
* ए + अ = अय (ने + अन = नयन)
* ऐ + अ = आय (गै + अक = गायक)
* ओ + अ = अव (पो + अन = पवन)
* औ + अ = आव (पौ + अक = पावक)
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