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MahaabhojMD
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मैं अँधेरे में बैठा था
मैं सिर्फ सुन रहा था
वहाँ कुछ शोर सुन रहा था
वह मर्द और औरत की आवाजें थी, मैं जानता था
वह उसे हँसाना चाहता था
और वह कुछ कहा , वह हंसी
जब भी वह हंसती थी
उसकी दाँतों की गर्म हवा
मेरे बदन को छू रही थी
मैं सिर्फ सुन रहा था
मैं जानता था
यह कुछ और नहीं मेरी माँ थी
वह कुछ और नहीं मेरे पिता थे
उस अँधेरी जगह
वह जगह और कही नहीं मेरी माँ की कोख था
लेखक : यू श्रीनिवासुलु
अंग्रेजी से हिंदी अनुवादक “ मणिकांत बनागानापल्ली और मसिपोगु चिन्ना महादेवुडू ”
Edited by : ईरेल्ली उपेन्दर
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