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उच्च शिक्षा में नेतृत्व और प्रबंधन की भूमिका

उच्च शिक्षा में नेतृत्व और प्रबंधन की भूमिका
                      हम जानते हैं कि शिक्षा संबंधी हर कार्यक्रम , संगोष्ठी आदि ज्यादातर शिक्षा में गुणवत्ता और रोचक बढ़ाने के लिए ही होता रहता है । वास्तव में कुछ साल पहले शिक्षा में बड़ी गुणवत्ता , रोचकता और आदि उचित रूप में थीं । परंतु उस शिक्षा में कठिनाइयां अधिक थीं । इसलिए शिक्षक कठोर व्यवहार करके बच्चों को पढ़ाते थे और छात्रों के दिमाग में ज्ञान भरते थे । कालांतर में कुछ साल बाद यह कठोर व्यवहार के प्रति विरुद्ध होकर ( करके) छात्रों के जीवन को आधा ज्ञान से ही संतुष्ट होना सिखाया गया है । आजकल फिर शिक्षा में गुणवत्ता , रोचक बढ़ाने के लिए शिक्षकों को बाल केंद्रित शिक्षण की ओर उन्मुक्त करने के लिए सरकार, शिक्षण संस्थाओं ने बहुत प्रयास कर रहे हैं । वैसे उच्च शिक्षा में ज्यादातर शिक्षक ( सहायक आचार्य , आचार्य ,प्रध्यापक) हर विषय पर ज्ञान पाकर और प्रशिक्षित होकर आचार्य, सहायक आचार्य , प्रध्यापक बनते हैं । वैसे ही छात्र भी प्राथमिक शिक्षा , माध्यमिक शिक्षा आदि में उत्तीर्ण होकर ही उच्च शिक्षा में कदम रखते हैं । इसलिए यहां विषय ज्ञान की समस्या, कमी नहीं बल्कि व्यवहार ज्ञान की समस्या ,  कमी है । इसलिए छात्रों में व्यवहारिक ज्ञान , अनुशासन, देश भक्ति , सद्गुणों , आदर्श - तर्क दृष्टि , परोपकार आदि भावनाएं छात्रों के दिमाग में भरना है , जगाना है । यह सब अधिकांश नेतृत्व और प्रबंध के द्वारा हो सकता है या उसके द्वारा पाया जा सकता है । नेतृत्व और प्रबंधन प्रकृति में अविभाज्य हैं। यदि प्रबंधन है , तो नेतृत्व है। वास्तव में , एक प्रबंधक के गुणों को अपने अधीनस्थ को प्रेरित करने के लिए नेतृत्व कौशल की आवश्यकता होती है । एक संगठन में , आप प्रबंधन और नेतृत्व दोनों देख सकते हैं । एक विभाग में एक प्रबंधक और कई नेता होते हैं जो अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में संगठन की सहायता के लिए अपनी टीमों के साथ काम करते हैं । कई बार प्रबंधक संगठन की मांग पर एक नेता के भूमिका निभाते हैं । इसलिए वे दोनों एक-दूसरे के पूरक के रुप में साथ साथ चलते हैं । एक संगठन को अपने विकास और अस्तित्व के लिए दोनों की आवश्यकता होती है ।
      नेतृत्व और प्रबंधन बीच में अंतर
               नेतृत्व लोगों को प्रभावित करने का एक गुण है , जिससे कि उद्देश्य स्वेच्छा और उत्साह से प्राप्त होते हैं । यह प्रबंधन के समान नहीं है , क्योंकि नेतृत्व प्रबंधन के प्रमुख तत्व में से एक है ।  
     प्रबंधन सर्वोत्तम संभव तरीके से चीजों को प्रतिबंधित करने का एक अनुशासन है । यह दूसरों के माध्यम से और उसके साथ काम करने की कला या कौशल है । यह सभी क्षेत्रों में पाया जा सकता है , जैसे शिक्षा ,खेल , परिवार ,कार्यालय आदि ।   
प्रबंधन 
                      आज हम जिस युग में जी रहे हैं ,वह संगठनों का युग कहा जाता है । । कॉलेज , अस्पताल , सरकार , स्वयंसेवी संस्थाएं , क्लब , बाजार आदि सभी हमारे दैनिक जीवन से जुड़े संगठन है । कोई भी संगठन चाहे कितना भी बड़ा हो या छोटा हो प्रबंधन के बिना वह अपने लक्ष्यों या उद्देश्यों की प्राप्त नहीं कर सकता हैं । प्रबंध के सहारे ही यह संगठन अपनी निरंतरता और गुणवत्ता को बढाये रखते हैं । प्रबंधन हमारे घर से शुरू होता है । हम सभी ने अपनी मां को हमारे जरूरतों की देखभाल करते देखा है चाहे वह छोटा हो या बड़े । घर का बजट बनाए रखना , निवेश या वित्ते के बारे में निर्णय लेना , हमारे भविष्य की योजना बनाना , हमारी गतिविधि पर नजर रखना , कार्यक्रम का आयोजन करना , गाइड और हमें अपने कैरियर के उद्देश्य आदि को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है । यह प्रबंधन यानी नियोजन , नियंत्रण , आयोजन, अग्रणी और प्रेरक और निर्णय लेने के कार्य है ।
              प्रबंधन एक व्यक्ति या व्यक्तियों का एक समूह है जो संगठन चलाने के लिए जिम्मेदारियों को स्वीकार करता है । प्रबंधन एक निरंतर और कभी खत्म नहीं होने वाली प्रक्रिया है । प्रबंधन स्वयं काम नहीं करता है । वह संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी कार्यकर्ता को काम करने और समन्वय के लिए प्रेरित करते हैं । इस तरह हम कह सकते हैं कि किसी भी संगठन के निर्धारित उद्देश्यों को विदेशियों की पूर्ति हेतु उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों का सर्वोत्तम उपयोग ही प्रबंध है । 
                प्रबंधक के रूप में शिक्षक समाज को स्थिरता प्रदान करने वाला तथा परंपराओं का संरक्षक है । व्यक्तियों के विकास में प्रबंधन का अत्यंत महत्त्व है। वैसे छात्रों की समस्त क्रियाएँ मानवीय विकास से संबंधित होती है । यह व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है और उनका सर्वांगीण विकास करता है । उच्च शिक्षा के समृद्धि में भी प्रबंध का काफी महत्व रहता है । कुशल शिक्षक जब न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन संभव बनाते हैं। शिक्षण समस्याओं को सुलझाते हैं । शिक्षण के विभिन्न कौशलों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति निभाते हैं , जिससे उच्च शिक्षा के समृद्धि और बढ़ता है । 
           प्रबंधन जगत में नेतृत्व का अपना एक विशिष्ट स्थान है । एक छात्र , शिक्षक सफलता या असफलता हेतु काफी हद तक नेतृत्व जिम्मेदार होता हैं । कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी शिक्षक , छात्र सफलता के सोपानों को पार नहीं कर सकते हैं यहां तक भी माना जाता है कि कोई भी शिक्षक भी शिक्षक ,छात्र तभी सफल हो सकते हैं , जब उसका प्रबंधन ने नेतृत्व भूमिका का सही निर्वहन करता है । 
       नेतृत्व
                    लोगों के समूह का नेतृत्व करने और उन्हें एक दिशा की ओर प्रेरित करने का कौशल नेतृत्व के रूप में जाना जाता है । यह एक पारस्परिक प्रक्रिया है , जिसमें किसी व्यक्ति या समूह को प्रभावित करना शामिल है , ताकि उद्देश्यों की उपलब्धि और उत्साह से सुनिश्चित हो सकें । नेतृत्व व्यवहार का ढंग होता है , जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के व्यवहार से प्रभावित न होकर अपने व्यवहार से दूसरों को अधिक प्रभावित करता है । 
        उच्च शिक्षा में नेतृत्व विकास होना आवश्यक है । यह नेतृत्व विकास उद्यमिता नेतृत्व , गौरव कार्य नेतृत्व , परोपकारी नेतृत्व , मातनेतृत्व एवं परिवर्तनकारी नेतृत्व आदि राष्ट्र निर्माण के लिए उच्च शिक्षा में विशेष भूमिका निभाते हैं । 
    शिक्षक वह व्यक्ति है जो अपने शिक्षण कार्य के द्वारा छात्र के व्यवहार में परिवर्तन का प्रयास करता है । वह छात्र को पशुत्व से मनुष्यता की ओर , मनुष्यता से देवत्व की ओर ले जाता है । साथ ही वह छात्र का सर्वांगीण विकास करता है । उच्च शिक्षा में शिक्षक छात्र के समायोजन के लिए पर्यवेक्षण , प्रबंधन तथा शासन का बहुत महत्व होता है । उच्च शिक्षा में असंतुलन बहुधा छात्रों के स्वभाव दोष से ही नहीं होता बल्कि गलत और बुद्धिहीन नेतृत्व के कारण भी होता है । शिक्षक अपने छात्रों से अपने निर्देशानुसार से ही पढवाता है । जैसा शिक्षक का व्यवहार होता है , जैसे उसके आदर्श होते हैं , छात्र भी वैसा ही व्यवहार निर्धारित करते हैं । इसलिए कालेजों में शिक्षक का नेतृत्व जैसा होगा, छात्र भी उसी के उसी के अनुरूप कार्य करेंगे । 
 उच्च शिक्षा में नेतृत्व के लिए दो पक्षी होना अनिवार्य है । वे है नेता के रूप में शिक्षक , अनुयायी के रूप में छात्र है। शिक्षाक छात्रों के व्यवहार को अधिक सीमा तक प्रभावित करता है । नेतृत्व संबंधित प्रभाव दबाव युक्त नहीं होता , इसे साधारण तथा स्वेच्छा पूर्वक ग्रहण किया जाता है । दबाव केवल शिक्षक के नैतिक प्रभाव का होता है । नेतृत्व अनियोजित न होकर विचार पूर्वक अनुयायियों के व्यवहारों को निश्चित दिशा में मोड़ दिया जाता है । प्रत्येक समूह के लिए नेतृत्व की आवश्यकता होती है । चाहे वह राजनैतिक हो या सामाजिक हो , धार्मिक हो और औद्योगिक हो या शिक्षा की हो कोई भी समूह बिना नेतृत्व के अस्तित्व हीन होता है । एक शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान कमाकर हमें सीखाने का सिद्धांत , अनुसंधान , मूल्यांकन , पाठ्यक्रम विकास और शैक्षणिक प्रौद्योगिकी आदि बेहतर से समझाता है । कौशल के इस संयोजन शैक्षिक नेतृत्व जीवन की गुणवत्ता के लिए एक मजबूत आधार प्रदान कर सकता है । उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समकालीन मुद्दों और शिक्षा के सिद्धांत और दोनों कालेज और राष्ट्रीय शिक्षा के नजरिए से व्यवहार में प्रवृत्तियों पर दृष्टिकोण का मूल्यांकन करता है । शैक्षिक प्रौद्योगिकी और उभरते मीडिया जैसे: कंप्यूटर , वेब आधारित संसाधनों और मल्टीमीडिया समस्या को हल करता है । शैक्षिक अनुसंधान कौशल समीक्षा गंभीर , आकलन और मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों तरीकों का उपयोग शैक्षिक अनुसंधान का मूल्यांकन करने की आवश्यक जानता है । शैक्षिक मापन और मूल्यांकन में सिद्धांत और शिक्षा के माप और पाठ्यक्रम योजना , विकास , वितरण , प्रतिक्रिया और सुधार के लिए मूल्यांकन की तकनीक का परीक्षण कहता है । नेतृत्व करते समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए । वे समस्याओं को धैर्य पूर्वक सुनना , सोच समझकर निर्णय लेना , कर्मचारियों को हतोत्साहित न करना , कम से कम संवेदनशील व संवेग शील हो । नेता स्वयं वाद विवाद से बचा रहे , अनुयायियों की प्रशंसा करना , विचार विमर्श में निपुणता तथा तर्कपूर्ण ढंग से अनुयायियों से अपने विचारों को स्वीकार कर लेने की क्षमता हो आदि ।  
 अधिकांश शिक्षक छात्र सफल होने का प्रमुख कारण कुशल नेतृत्व ही है ।

                              नेतृत्व और प्रबंधन के बीच प्रमुख अंतर प्रबंधन केवल लोगों के औपचारिक और संगठित समूह के लिए है , जबकि नेतृत्व औपचारिक और अनौपचारिक दोनों समूह के लिए हैं। 
           निष्कर्ष  ‌‌:
              उच्च शिक्षा में नेतृत्व , प्रबंधन को विशिष्ट स्थान है , जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों में ज्ञान एवं कुशलता का विकास करना है जिससे कि वे समाज को उन्नत बनाने में अपना योगदान दे सकें । अधिकतर शैक्षणिक संस्थाओं को सभी गतिविधियों को सफल बनाने में नेतृत्व प्रबंध की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । आजकल शिक्षा की मुख्य लक्ष्य होता है कि समाज को एक अच्छा नागरिक देना । अच्छे नागरिक बनाने में प्रबंधन और नेतृत्व की जिम्मेदारी ज्यादा है । क्योंकि आजकल आधुनिक दुनिया में नैतिक मूल्यों की कमी हमें ज्यादा दिख रही हैं । इसलिए मेरा उद्देश्य है कि सभी अपने जिम्मेदारी निभाए और एक अच्छे नागरिक बनें।

      - मासिपोगु चिन्ना महादेवुडु ( MA.,B.Ed, AP SET,UGC NET)
                             Guest lecturer in Hindi
                       के.वि.आर डिग्री कॉलेज( महिला), कर्नूल
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