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हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रसार में भारतीय एवं विदेशी संस्थाओं की भूमिका
प्रयोक्ताओं की संख्या की दृष्टि से हिंदी विश्व की तीन प्रमुख भाषाओं में से एक हैं। विश्व के लगभग ४७ देशों में हिंदी के अध्ययन एवं अध्यापन की व्यवस्था है। यह अध्ययन-अध्यापन या पठन-पाठन के द्वारा हिंदी भाषा एवं साहित्य को प्रचार और प्रसार कर रहे हैं। जैसे विश्वविद्यालयों में, महाविद्यालयों में, विद्यालयों में, शिक्षण संस्थाओं में हिंदी प्रमुख एवं वैकल्पिक विषय के रूप में अर्थात प्रथम या द्वितीय या तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाकर हिंदी के प्रचार और प्रसार में बढ़ावा दे रहे हैं।
भारत में हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रसार में स्वदेशी संस्थाओं की भूमिका
हिंदी भाषा एवं साहित्य प्रचार प्रसार के कार्य में हिंदी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि भारत में हिंदी प्रचार कार्य स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं ने ही शुरू किया था। 1857 से 1957 तक का सौ वर्ष का काल भारतीय पुनर्जागरण का काल था । यद्यपि 1857 की जनक्रांति असफल हो गई थी, तथापि राष्ट्र की आहत आत्मा पुनरुत्थान के मार्ग पर अग्रसर होने को व्याकुल हो उठी थी। यही व्याकुलता ब्रह्म समाज , आर्य - समाज, देव समाज , सनातन धर्म सभा आंदोलनों के रूप में फूट निकली। सबसे पहले स्वामी दयानंद ने राष्ट्रीय पुनरुत्थान के हेतु राष्ट्रभाषा के अनिवार्य महत्व को समझा और इसे आर्य समाज के मूलभूत सिद्धांतों में सम्मिलित भी कर लिया। राष्ट्रीय जागरण के गांधी युग में तो राष्ट्रभाषा प्रचार का कार्यक्रम समग्र राष्ट्रीय आंदोलन के कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया ।
भारत में (हमारे देश में) अनेक हिंदी सेवी संस्थाएं यंत्र-तंत्र सदैव हिंदी के व्यापक प्रसार में सक्रिय योग दे रही हैं-इनमें सर्वप्रथम वाराणसी में नागरी प्रचारिणी सभा, काशी है। नागरी प्रचारिणी सभा काशी 16 जुलाई 1893 वाराणसी में स्थापित किया गया। इसकी मूल उद्देश्य राष्ट्रभाषा हिंदी तथा देवनागरी लिपि का देशव्यापी प्रचार करना। सभा ने 20 वर्ष की सतत साधना के उपरांत हिंदी शब्द सागर कोश प्रकाशित किया। इस संस्था में हिंदी के प्राचीन अप्राप्य ग्रंथों(हस्तलिखित और मुद्रित) के निरंतर वृद्धि , प्राचीन अनुपलब्ध साहित्य का अन्वेषण एवं अनुसंधान, अनुशीलन, कोशों का प्रकाशन,पत्र- पत्रिकाएं, साहित्य गोष्टी, सुबोध व्याख्यामाला, पुरस्कार और पदक,संकेतलिपि आदि में महत्वपूर्ण कार्यों द्वारा हिंदी को प्रचार कर रही है।
हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग इसकी स्थापना 1910 में हुआ नागरी लिपि के व्यापक प्रचार प्रसार एवं व्यवहार के संबंध में क्रियात्मक विचार विनिमय करने की उद्देश्य में स्थापित किया गया।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा यह 1918,मद्रास में स्थापित किया गया । यह एक प्रमुख हिंदी सेवी संस्था है,जो भारत के दक्षिण राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश,केरल और कर्नाटक में भारत के स्वतंत्र होने के काफी पहले से हिंदी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा "एक ह्रुदय हो भारत जननी" को सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,वर्धा में स्थापित किया गया। इसकी कार्य-क्षेत्र देश के साथ साथ,विदेशों में भी कार्य कर रही हैं। साहित्य- निर्माण, पाठ्य-पुस्तक प्रकाशन, विद्यालय संचालन आदि अन्य प्रवृत्तियां भी हैं।" राष्ट्रभाषा" समिति अपना मुख पत्र "राष्ट्रभारति" तथा अन्तः प्रांतीय भारतीय साहित्य की प्रतिनिधि पत्रिका का प्रकाशन भी करती है।
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति पुणे, 1930 में स्थापित यह संस्था महाराष्ट्र के 12 जिलों तथा गोमंतक क्षेत्र में आज तक भारतीय संस्कृति तथा परंपरा के अनुरूप सतत प्रचार करती आ रही है। "जय भारती" समिति का मुख्य पत्रिका है।
राष्ट्रभाषा प्रचार सभा, पुणे 1903 में स्थापना की गई, "राष्ट्रभाषा हिंदी सर्वसंग्रही" माने विशेष मान्यता देकर हिंदी को सर्वोदेशीय भाषा बनाने की दृष्टि से भारत की समस्त भाषाओं तथा उनके साहित्य के सहायता से हिंदी की विकास करने की उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई ।
गुजरात विद्यापीठ गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने 1920 ई. के असहयोग आंदोलन के फल स्वरूप शाला-महाविद्यालयों का त्याग करने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए की है।
अखिल भारतीय हिंदी परिषद 1949 में इस संस्था की स्थापना हुई है। इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार राष्ट्रभाषा हिंदी के निर्माण विकास और प्रचार में सहयोग देना है। हिंदी भाषा की अन्य भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहन देना, परिषद के कार्यक्रम का एक विशेष अंग है। इस परिषद से दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास, पूर्व भारत राष्ट्रभाषा प्रचार सभा कलकत्ता, उत्कल प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार सभा कटक, आंध्र राष्ट्र हिंदी प्रचार सभा विजयवाड़ा आदि अनेक संस्थाएं संबद्ध हो गयीं। अहिंदी प्रदेशों के विद्यार्थियों की उच्च शिक्षा के लिए परिषद की ओर से आगरा में एक महाविद्यालय चलाया जा रहा है।
हिंदुस्तानी प्रचार सभा "वसुधैव कुटुंबकम और सर्वधर्म समभाव का विश्वास, राष्ट्रीय एकता आदि इरादों से हिंदुस्तानी के प्रचार प्रसार में अग्रणी संस्था "हिंदुस्तानी प्रचार सभा" की स्थापना सन 1942 में महात्मा गांधी ने की थी।
हिंदुस्तानी अकादमी प्रयाग राष्ट्रभाषा को विश्व की प्रमुख भाषाओं के समकक्ष बैठाना और उसके सर्वांगीण उन्नति आदि उद्देश्यों से हिंदुस्तानी अकादमी के स्थापना सन 1927 में हुई थी।
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना कला, विज्ञान एवं अन्यान्य विषयों के मौलिक तथा उपयोगी ग्रंथों का हिंदी में प्रकाशन के उद्देश्यों से बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना 1974 में स्थापना हुई।
साहित्य अकादमी,नई दिल्ली भारत की सभी भाषाओं के साहित्य का विकास करना है तथा उनकी साहित्यिक गतिविधियों में सहकारिता स्थापित करके भारत के सांस्कृतिक एकता की साधना आदि के उद्देश्यों से साहित्य अकादमी की स्थापना भारत-सरकार द्वारा 12 मार्च,19 54 को की गई। अपने उद्देश्य की सिद्ध के लिए अकादमी ने विविध साधनों को अपनाया है। वे" नेशनल विबलोग्राफी आफ इंडियन लिटरेचर", " हु इज हू आव इंडियन राइटर्स" तथा" इंडियन लिटरेचर" नामक पत्रिकाएं प्रकाशित करना,साहित्य प्रदर्शनीयों का आयोजन करना, पुरस्कार प्रदान करना, विभिन्न भाषाओं में साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं, उत्तम साहित्यिक पुस्तकें, संदर्भ ग्रंथ विभिन्न भारतीय तथा विदेशी भाषाओं के संग्रहित, पुस्तकालय, वाचनालय आदि के द्वारा हिंदी को प्रचार कर रही है।
विदेशों में हिंदी भाषा एवं साहित्य की प्रसार में विदेशी संस्थाओं की भूमिका
जिस प्रकार भारत में हिंदी के प्रचार- प्रसार में स्वैच्छिक संस्थाओं का योगदान रहा है,उसी प्रकार विदेशों में भी हिंदी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।जिन देशों में अप्रवासी भारतीयों की आबादी देश की जनसंख्या में प्रतिशत से अधिक है, उन देशों में सरकारी एवं गैरसरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में हिंदी का शिक्षण होता है। जिन देशों के निवासी हिंदी को एक "विश्व भाषा" के रूप में सीखते हैं,पढ़ते हैं तथा हिंदी में लिखते हैं उन देशों की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में प्रायः स्नातक एवं/अथवा स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी की शिक्षा का प्रबंध है। कुछ देशों के विश्वविद्यालय में हिंदी में शोध कार्य करने और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने की भी व्यवस्था है।
भारत से इतर जिन देशों में हिंदी बोली जाती है तथा/अथवा जहां हिंदी का अध्ययन, अध्यापन के रूप में हिंदी प्रचार और प्रसार होता है ,उन देशों को हम तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं ।
वे (क) वह देश जहां अप्रवासी भारतीय बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं: मॉरीशस, फीजी, सूरीनाम, गयना, ट्रेनी डॉड एंड टुबेगो।
(ख) भारत के पड़ोसी देश : पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल,भूटान,मयमार आदि।
(ग) अन्य देश :
१.अमेरिका महाद्वीप: संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, क्यूबा आदि।
२.यूरोप महाद्वीप: रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम,हालैंड,ऑस्ट्रिया, स्विट्ज़रलैंड, डेनमार्क,नार्वे, स्वीडन, फिनलैं , इटली,पोलैंड, चेक, हंगरी, रोमानिया, बलारिया,उक्रेन, क्रोशिया आदि ।
३.अफ्रीका महाद्वीप: दक्षिण अफ्रीका,रीयूनियन द्वीप आदि।
४.एशिया महाद्वीप: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान ,तुर्की, थाईलैंड आदि।
५.ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप: ऑस्ट्रेलिया आदि।
हिंदी भाषा एवं साहित्य ज्ञान के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन में समिति, सभा ,संघ, धार्मिक संस्थाएं, पुस्तकालय, दूरदर्शन, आकाशवाणी, चलचित्र सिनेमा फिल्मी गीतों आदि आधुनिक उपकरणों का पर्याप्त योगदान रहा है ।देश-विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में इनके महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। इस तरह हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रसार विदेशों में भी तेजी से चल रहा है। विश्वविद्यालयों, विद्यालयों, कालेजों, शिक्षण संस्थाओं आदि के द्वारा भी हिंदी प्रसार तेजी से हो रहा है। हर देश में कम से कम १या २ विश्वविद्यालयों में और अनेक कालेजों में, विद्यालयों में हिंदी भाषा को और साहित्य को पढ़कर हिंदी को प्रसार कर रहे हैं।
उपर्युक्त कथनों से समग्र रूप से कहा जा सकता है कि देश,विदेशों में भी हिंदी भाषा के पठन-पाठन, प्रचार-प्रसार, अध्यापन-अध्ययन उत्साह निरंतर बढ़ रहा है। इस समय देश-विदेश में हिंदी के दो रूप माने जा सकते हैं -उसका पारंपरिक रूप, तथा उसका शिक्षण- परवर्ती रूप।पहले का संबंध वहां भारतीय मूल के निवासियों की हिंदी से है जिसे बोलचाल की हिंदी कह सकते हैं। दूसरे का संबंध शिक्षण-प्रशिक्षण के पश्चात सीख गई हिंदी से है जो विशेष रूप से प्रयोजनमूलक है। वसुधैव कुटुंबकम माने भावना सभी लोगों में जगाने के लिए हिंदी ही एक मात्र साधन है। भारत में विदेशी मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य किया जा रहा है । इसके अलावा प्रत्येक वर्ष सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है और विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उपर्युक्त संस्थाओं के अतिरिक्त भी अनेक हिंदी सेवी संस्थाएँ हिंदी के प्रचार-प्रसार के कार्य की ओर तत्परता के साथ लगी हुई है।वैसे भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में भी हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार हो रही है, लेकिन संपूर्ण रूप से तो नहीं हो रही है। क्योंकि यहां पढ़ाने वाले बहुत कम है। कुछ विद्यालय , महाविद्यालय में तो एक भी अध्यापक,प्रध्यापक नहीं है । फिर भी ऊपर से निंदा करते हुए कहते हैं कि छात्रों के कमी के कारण हिंदी पोस्ट निकाल रहे हैं एवं भर्ती नहीं कर पा रहे हैं । परंतु महाविद्यालय में हिंदी पढ़ने को रुचि रखने वाले छात्र अधिक है। क्योंकि मैंने खुद देखा हूं जब मैं अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम करने के लिए एक महाविद्यालय गया तब हिंदी पढ़ने वाले छात्र एक भी नहीं थे,मगर हिंदी का महत्व के बारे में , हिंदी का भविष्य के बारे में, हिंदी का उपयोगिता के बारे में कहने के बाद कम से कम आठ छात्रों ने हिंदी पढ़ने की तैयार हो गए थे। इसलिए कहना चाहता हूं कि हिंदी पढ़ने के क्षमता छात्रों में है। मगर सरकार, प्रशासनिक अधिकारियों को देश भाषा, राजभाषा के ऊपर थोड़ा भी इज्जत, ममकार,दया आदि भावनाएँ नहीं हैं। राज भाषा,देश भाषा को सिर्फ उत्तर भारत की भाषा जैसे देखते हैं। इसलिए मेरा विनम्र निवेदन है कि जितना हिंदी प्रचार-प्रसार ऊपर ऊपर हो रही हैं उतना क्षेत्र स्थायी में ,महाविद्यालय में और विद्यालय में नहीं हो पा रही हैं, इसलिए हम सब सच्चे दिल से हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार में क्षेत्र स्थाई से अपने महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए कोशिश करें।
मासिपोगु चिन्ना महा देवुडु(MA,B.Ed,UGC NET, AP SLET)
Guest lecturer in Hindi
K.V.R govt Degree College for women(A),Kurnool
Andhra Pradesh
Gmail: chinnamahadeva@gmail.com
Cell: 7702407621
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