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मुहब्बत का अंज़ाम

 बेताबी बेचैनी को अपनाना  भीड़ में अकेला होना  अकेले में आँसू पीना  प्यार की गीतों में प्यारी नजर आना  निरुत्साह निराश में डुबे रहना  लड़कियों के प्रति नफ़रत होना  जोश मस्ती में मन नहीं लगना  आदि सभी लक्षण आ जाते हैं  अगर मुहब्बत में मन मूर्जाने तो  अतएव कम दिन के  जिंदगी को और जवानी को  प्रेम नामक अभिनय के खातिर  अपना न होने पराया के लिए  त्याग देना महान पाप है  इससे अच्छा  प्रेमनगर के द्वार को बंद करके  स्वर्गनगर के द्वार को  खोलना है उचित।।

बाहर जीत ,घर में हार

                    बाहर जीत ,घर में हार
               आप सभी लोगों को विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं है। आज विश्व हिंदी दिवस है, इसलिए सबको मजबूरी में शुभकामनाएं देना पडा । मगर यह बात बोलने के लिए भी मुझे थोड़ा सा खेद लगा क्योंकि हिंदी विश्व स्तर पर स्वयं को सिद्ध कर चुकी है मगर अपनी मातृभूमि पर सिद्ध नहीं कर पाई है। अर्थात जितना इज्जत बाहर देशों से मिल रहे हैं उतना अपनी देश में नहीं मिल पा रहे हैं।
             हिंदी वह भाषा है जो भारत की शान,मान,बान कहने की सार्थक है। हिंदी देश से आगे बढ़कर विदेशों तक पहुंच गई और संयुक्त राष्ट्र में भी प्रयुक्त किया जा रहा है । मगर इसी देश में जो हिंदी के जन्म स्थान पर उसको आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं । सिर्फ हिंदी को राज भाषा माने घोषित करके उसको कागजों में , केंद्र कार्यालय में बांधके रखा है। किंतु भाषण में तो " हिंदी राष्ट्रभाषा है, संपर्क भाषा है " माने तारीफ करते रहते हैं ,क्या यह सही है । आज भी विश्व हिंदी दिवस माने पूर्वा विश्व मना रहे हैं परंतु हिंदी के मातृभूमि हिंदुस्तान में दैनिक पत्रिकाओं में, टेलीविजन के कुछ कार्यक्रमों में एक पल शुभकामनाएं देते हैं और खत्म कर देते हैं।
           अनेकता में एकता भारत की विशेषता माने सारा विश्व को बताने वाले भाषा हिंदी को भारत के कुछ राज्यों में नालायक जैसे रही है । वास्तव में किसी राज्य का महत्व , विशेषता केवल साहित्य पर निर्भर होता है , उसी साहित्य का साधन भाषा को सिर्फ विद्यालय में ही सीखते हैं और सिखाते हैं । उस विद्यालयों में हिंदी थोड़ा-थोड़ा सीखते हैं। जब हिंदी को पूर्ण रूप से सीखने के लिए, समझने के लिए महाविद्यालय में कदम रखते हैं, वहां हिंदी भाषा को पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं रहते हैं क्योंकि सरकार ने हिंदी शिक्षक पद को भर्ती नहीं करते हैं । इसके कारण हिंदी पूर्ण रूप से छात्र नहीं पढ़, लिख और समझपाते हैं । इसलिए छात्र हिंदी को दूसरा भाषा के रूप में भी नहीं ले पाते हैं । तब भी सरकार ने छात्रों के ऊपर निंदा करते हुए कहते है कि, हिंदी पढ़ने वाला छात्र अधिक नहीं है इसलिए हम हिंदी पद को निकाल रहे हैं। यहां मैं एक बात पूछना चाहता हूं हिंदी के पद निकाल देने से हिंदी को कैसे पढ़ेंगे। उस कम छात्र भी हिंदी पूर्ण रूप से नहीं सीख पाने तो उनका हिंदी में भविष्य क्या है , राष्ट्रभाषा हिंदी का भविष्य क्या है और राष्ट्रभाषा कैसे आगे बढ़ेगी आप लोगे ही सोचना चाहिए। वैसे आजकल छात्र सिर्फ पूर्ण रूप से अंक प्राप्त करने के लिए किसी एक भाषा को चुनकर बिना पढ़ेके अंक प्राप्त कर रहे हैं। यहां छात्रों का गलती नहीं है, क्योंकि समाज में अंक ही ज्यादा प्राप्त करना है माने एक एक अंधविश्वास उनको सिखाया है। यहां विषय समझना सीखने से कोई मतलब नहीं है, मगर अंक ज्यादा मिल गए तो वह छात्र समझदार और होशियार माने समझकर तारीफ करते रहते हैं। ऐसी अंधविश्वास छात्रों के माता पिता के दिमाग में भी भराया है।
          में शिक्षक " अंधविश्वास ,अज्ञान माने अंधेरा से छात्रों को बाहर निकाल कर ,ज्ञान , तर्क,विश्लेषणऔर मानवता माने रोशन में लाने वालों को" ही कहते हैं । आजकल वही शिक्षक छात्र भटकने से उसको सही रास्ता पर लाने के लिए ज्यादा नहीं सोच रहे हैं। आजकल शिक्षक सिर्फ अपने परिवार ,अपने कुछ प्रिया छात्र ,अपने कुछ आदरणीय अधिकारियों के लिए ही अपना भूमिका सहजता से निभाते हैं । अतः शिक्षकों के लिए एक सुझाव देना चाहता हूं कि, " जोर से शोर मचाने वाले मूर्खों से ज्यादा आपत्ती में, वक्त आने पर भी आवाज ना उठाकर खामोश से सहने वालों से ज्यादा खतरा हमारा देश को है"। इसलिए खामोश रहकर भाषा को बिगड़ने नहीं देना है। अतः सभी लोगों को देश की भलाई के लिए देश भाषा की विकास के लिए अपने विचार व्यक्त करना चाहिए । हिंदी भाषा हिंदुस्तान के भाषा है , हिंदी भाषा से ही स्वतंत्र संग्राम में लड़कर जीत प्राप्त करअजाद हुए हैं। वैसे भारत की सभ्यता संस्कार पूरा विश्व हिंदी माध्यम से ही देखा है। हिंदी भाषा ही भारत की विशेषता जो "अनेकता में एकता "की प्रतीक है । आध्यात्मिक भावना हिंदी भाषा ही विश्व के सामने रखा है।
         अधिकतर शिक्षक कहते है कि हमारे जैसे शिक्षकों के हाथ में कुछ नहीं होता है, सब कुछ प्रशासनिक अधिकारियों का हाथ में ही होता है वहा से आने वाले सूचनाओं के अनुसार ही काम करना पड़ता है । इसलिए मैं प्रशासनिक अधिकारियों को भी याद दिलाना चाहता हूं कि प्रशासनिक अधिकारियों आप लोग भी भाषा सीख कर वही भाषा के माध्यम से ही ज्ञान , व्यक्तित्व,सभ्यता और संस्कार प्राप्त करके बड़े उच्च अधिकारी बने हैं । आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं कि भाषा पढ़ने वालों की संख्या कम होने से राष्ट्रीय भाषा को क्यों निकाल दे रहे हैं । अगर भाषा के ऊपर इतना प्यार ,मोहब्बत, तरस और इज्जत की भावनाएं आपके अंदर होने तो भाषा को पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ा दीजिए । आपको मैं एक और बात याद दिलाना चाहता हूं कि" घर में बुजुर्ग लोग काम नहीं आ रहे हैं माने उनको घर से बाहर निकाल देते हैं क्या" जरा एक बार सोचिएगा ।
     वैसे तो कुछ नेता लोग बार-बार चिल्लाकर सवाल पूछते हैं कि दक्षिण से किसी को प्रधानमंत्री बना दीजिए? यह सवाल को अभी तक कोई भी सीधे उत्तर नहीं दे पाया । मगर मैं देना चाहता हूं कि आप लोग पूरा देश को पालन करना चाहते हैं। परंतु देश की भाषा को नहीं आगे बढ़ने देते हैं और वैसे हिंदी को न समझ- बोल -पढ़- लिखपाते हैं। राष्ट्रीय भावना देश के ऊपर प्यार आप लोग के अंदर नहीं है। सिर्फ देश के ऊपर अपना अधिकार चलाने का इच्छा ही हैं। इसलिए प्रधानमंत्री बनने का आप लोग काबिल नहीं है। इतना कमियां रखकर भी देश को कैसे संभालेंगे। एक और बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिंदी को अच्छी तरह पढ़ ,लिख और समझने वाले पी.वी नरसिम्हा राव जी देश के प्रधानमंत्री बने और हिंदी में प्रवीण अपने भाषण से सब को मुग्ध करने वाला वेंकैया नायडू भी देश के राजनीति पर विराजमान है।
                   वास्तव में हिंदी भाषा के माध्यम से ही एक (भारत ) देश को आजाद मिली है । हिंदी भाषा के माध्यम से ही एक प्रांत (तेलंगाना) को राज्य बना दिया है ,अर्थात तेलंगाना राज्य में नेताओं ने हिंदी के माध्यम से अपने भावनाएं केंद्र सरकार के सामने रखकर अपने लिए अलग राज्य प्राप्त किए हैं। उसी समय आंध्रा से हिंदी में अपने सारे भावनाएं केंद्र सरकार के सामने अभिव्यक्त करने वाले ज्यादा कम थे । इसलिए वह लोग तेलंगाना राज्य आसानी से प्राप्त किए ।यहां राज्यों के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि भाषा के महत्व के बारे में सोचना चाहिए । अगर भाषा होती तो दोनों राज्यों को केंद्र सरकार से भलाई अधिक होती थी। वैसे पिछले सरकार में तेलुगू देशम के सांसद के सदस्य राम मोहन नायडू अपने अभिप्राय , राज्य के जनता की भावनाएं और आंध्रप्रदेश की परिस्थितियां पूरा संसद में सुना दिया है। परिणाम स्वरूप 2019 चुनाव में नारा चंद्रबाबू नायडू के साथ देश के अग्र नेताओं ने अपने हाथ थाम लिया है। बाद में हार गया वह अलग बात है यहां हार जीत को मत देखिएगा । सिर्फ भाषा की महत्व को समझना। ऐसा गलत समझकर आने वाली पीढ़ीयों का , देश भाषा हिंदी का भविष्य खत्म मत करना ।  

        वैसे आप लोग राष्ट्रभाषा को सहारा ना देकर, मिठाने की कोशिश करते हुए और राष्ट्र के ऊपर अपना अधिकार चलाना चाहते हैं । वैसे हमारा राज्य में नया सरकार विद्यालय में रोजगार प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी माध्यम को चुना है वह अच्छी बात है, मगर रोजगार के साथ-साथ सभ्यता, संस्कार ,देश प्रेम, राष्ट्रीय भावना और मानवता के लिए प्रांतीय भाषा और राष्ट्रीय भाषा 'तेलुगू ,हिंदी ' भाषाओं को स्थाई रूप में स्वीकार करना चाहिए।
       इसलिए देश भाषा, राज भाषा ,संपर्क भाषा हिंदी को इज्जत दीजिए दक्षिण के हर राज्य में हिंदी को भी थोड़ी जगह दीजिए। अर्थात विद्यालय, महाविद्यालय, शिक्षण संस्थाओं में हिंदी भाषा को दूसरी भाषा के रूप में आगे बढ़ाकर हिंदी पद को भर्ती कीजिए । 


 लिखने के लिए तरसता रहा रात भर
सोचता रहा दिन भर क्योंकि
हो गई मेरी ह्रुदय में पीर 
पर्वत सी   पिघालना है ।
 इस हिमालय से कोई गंगा 
निकालना है ।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना 
मेरा मकसद नहीं है ।
यह मेरा कोशिश है कि
 भाषाओं का सूरत बदलनी चाहिए ।।
     - महादेव
        

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