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आचार्य कोलकलूरि इनाक जी के साहित्य - मानवता महादेव (7702407621)

 आचार्य कोलकलूरि इनाक जी के साहित्य - मानवता 
महादेव (7702407621)
साहित्य मानवता को सरल बनाने का माध्यम है। साहित्य साधना से हृदय विशाल होता है और दूसरे व्यक्ति का नजरिया समझने में सहूलियत होती है। इस बात के सबूत है आचार्य कोलकलूरि इनाक जी के साहित्य भंडार। किसी साहित्यकार के निर्माण में उसके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण योगदान रहता है, साहित्य में ही साहित्यकार के जीवन का प्रतिबिंब नजर आता है । जीवन के व्यापक क्षेत्र में केवल वे व्यक्ति महत्ता पा सके हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व से,अपने जीवन का उन्नयन किया है। 
        पद्म श्री आचार्य कोलकालूरि इनाक जी तेलुगु साहित्य के लिए अपूर्व वरदान जैसे है। वह बहुमुखी प्रतिभाशाली , साहित्य की दुनिया में विनय, ज्ञान संपन्न, विविध क्षेत्रों में अद्वितीय रचना सम्राट आचार्य कोलकलूरि इनाक जी कहानीकार , उपन्यासकार, नाटककार, राष्ट्रीय कवि, उत्तम अध्यापक और विश्वविद्यालय के कुलपति तथा देश-विदेश में कीर्ति पताका फहराने वाले महान ज्ञानी है।
तेलुगु साहित्य गगन के चमकने वाले नक्षत्र जैसे इनाक जी की प्रतिभा अद्वितीय है । उनका साहित्य लेखन अनेक क्षेत्रों में हुआ। कहानी , कविता , उपन्यास , नाटक , आलोचना और निबंध आदि क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा अनवरत है। व्यक्ति समाज का अंग है। समाज में व्यक्ति के लिए मानवता की भावना मन में होना अनिवार्य हैं। वह मानवता की भावना जब सामाजिक भावना से ओतप्रोत होते हैं तो, समाज में मानवता रूप में परिवर्तित होती है। इन्हीं सामाजिक मूल्य, मानवता से समाज का दायित्व स्थिर होता है। आजकल समाज में मानवता , मूल्यों का विघटन बहुत अधिक देखा जा रहा है। अतएव इनाक जी अपने साहित्य रचनाओं के माध्यम से सामाजिक मूल्यों की एवं मानवता भावनाओं की याद दिलाने के लिए प्रयत्न किया गया है। आचार्य इनाक जी के साहित्य में मानवता को समझने केलिए उनके साहित्य चिंतन को समझना आवश्यक है। हिंदी ,उर्दू के महान साहित्यकार प्रेमचंद जी के अनुसार साहित्यकार के अंदर टीस अथवा पीड़ा ही साहित्य की रचना करवाती है। इस विषय को स्पष्ट करते हुए उनकी बेटी आचार्य आशा ज्योति कहती हैं –
             “आचार्य इनाक जी का सारा साहित्य, उन्हीं का प्रतिबिंब है, जो उन्होंने स्वयं अपने जीवन में अनुभव किया। समाज की दुर्बलता के प्रति सहानुभूति, मनुष्य की वेदना आदि आचार्य इनाक जी को कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार, निबंधकार, आलोचक तथा शोधार्थी बनने के प्रेरक बने”। आचार्य इनाक के व्यक्तित्व के बारे में अपनी दूसरी बेटी आचार्य मधु ज्योति जी नान्न नामक रचना के माध्यम से कहती हैं कि “ पिताजी निस्वार्थ प्रेम सहित विनम्र और स्नेहशीली हैं। वैसे श्री कोलकलूरि श्री किरण , अनिता जी के सुपुत्र कोलकलूरि सुधीरद अपने दादा जी के बारे में कहते हैं कि दादाजी अपनी माता जी, पत्नी को बहुत प्यार करते हैं इसलिए उन्हीं के स्मरण में फरवरी 26 को पुरस्कार देते हैं और उन्हें के नाम से वेजेंड्ला गाव में कल्याण मंडप एवं ग्रंथालय बनवाया है। इसे ही पता चलता है दादाजी कितना मानवता वादी है ।
      आचार्य इनाक जी के विचारओं, समाज की असमानताओं के प्रति उनका दृष्टिकोण, दलित नारी के समर्थन की भावनाओं के साकार रूप हैं, उनके उपन्यास। आचार्य कोलकलूरि इनाक जी अनंतपुर की सरकारी कॅालेज में अध्यापक की नौकरी की। अनंतपुर में रहते समय वहाँ की परिस्थितियाँ, समस्याएँ तथा अनेक विवक्षताओं देखा और सामना किया। अतः उनके उपन्यास अनंतपुर की जो स्थिति के प्रतिबिंब जैसे है। अकाल के कारण, किसानों की दुस्थिति का वर्णन सरकार गड्डी में किया गया , तो अधिक वर्षा के कारण होने वाले परिणामों का वर्णन अनंत जीवन नामक उपन्यास में किया गया । सामाजिक जीवन को पाठक के हृदय तक ले जाने वाली वर्तमान साहित्य प्रक्रिया कहानी है। इनाक सामाजिक दृष्टि रखने वाले कथाकार है। उन्होंने समाज के दुख, जोश, गरीबीपन, मानवीय मूल्यों के विघात के प्रति आक्रोश आदि व्यक्त करने के लिए अपनी कहानियों को आधार बनाया। अतः उनके साहित्य में कहानी रीड की हड्डी के बराबर है। इनाक जी ने लगभग 200 कहानियां लिखीं। इनकी कहानियाँ नौ संग्रह के रूप में प्रकाशित की गई। ऊरबावि कहानी संग्रह के लिए तेलुगु विश्वविद्यालय हैदराबाद से सन 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनकी पहले कहानी उत्तर (सन 1954) इसमें एक गरीब व्यक्ति की वेदना व्यक्ति की गई है ,जो पूंजीपति से शोषित था। डॅा . लक्ष्मी नारायण कहते हैं - “इनाक जी की कहानियों में पीड़ा, शोषण आदि के प्रति विरोधी भावना व्यक्त की गई है और साथ-साथ आदर्शवाद तत्व भी दिखाई पड़ते हैं। इनकी कहानियों में सामाजिक मूल्यों का भी समर्थन किया गया है।“ इदा जीवितं कहानी में स्त्री-पुरुष के बीच रहनेवाली आर्थिक दुर्बलता का वर्णन किया गया है। व्यक्तियों के बीच छिपे हुए स्वार्थ का चित्रण प्रमादं कहानी में किया गया है। दोस्तों के बीच होने वाले अटूट संबंध का विश्लेषण मच्च तोलिगिंदि कहानी में किया गया है। आगरोत्ति कालिपोइंदि कहानी में संदेश दिया गया है कि समस्याओं का परिष्कार आत्महत्या नहीं है। दोंगा कहानी में बताया गया है कि परिस्थितियों के प्रभाव से भी कुछ लोग चोर बन जाते हैं। अपनी बूढ़ी पत्नी के लिए ही 90 वर्षों का एक व्रुद्ध चोर बनता है। यहाँ कवि संदेश देते हैं कि अगर लोग उसकी सहायता करते हैं तो वह चोर नहीं बनता । 
            समाज में पारिवारिक संबंध या मूल्य मानवता बढ़ाने में प्रमुख स्थान होते हैं। परिवार के बिना समाज की कल्पना ही नहीं कर सकते। माता , पिता , पति , पत्नी और संतान परिवार के सदस्य हैं। जब हर एक अपने-अपने कर्तव्य निभाते हैं , तो वे पारिवारिक मूल्यों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। परिवार में पति और पत्नी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  इनाक जी को अपनी माँ और पत्नी पर जो प्रेम था, वह अवर्णित है । अतएव नारी चेतना से संबंधित अनेक कहानियाँ लिखीं। नारी को रसोईघर तक सीमित रखना , दहेज की वेदना, विलासपूर्ण जीवन आदि समस्याओं से नारी को मुक्त करने के लिए आवश्यक सूत्र कहानीकार ने अपनी कहानियों में प्रस्तुत किया। इनाक जी दलित नारी चेतना के अभिलाषी हैं। उनकी कहानी ऊरबावि इसके लिए सच्चा सबूत है। अमृतम कहानी की रमा विवाह विच्छेद नारी है। वह एक दवाखाने में काम करती हैं। रवि उससे विवाह करने के लिए तैयार होता है। यहाँ इनक जी दूसरे शादी का समर्थन करते हैं । व्यथा से संपन्न दलित जीवन से मुक्ति पाना ही सूर्युडु तलेत्ताडु कहानी का सारांश है।भूख मिटाने के लिए एक दलित को कितना कष्ट सहना पड़ता है - इसका वर्णन आकली कहानी में किया गया है। एक दलित होने के नाते इनाक जी ने जाति-भेद की विवक्षता के प्रत्यक्ष साक्षी बने। उनके जीवन में जो घटनाएँ घटी, उन्हें का प्रतिबिंब उनकी कहानियों में दिखाई पड़ता है । डॉ लक्ष्मीनारायण का कथन है जीवन के अर्थ को समझने के लिए जीवन अनुभव काफी नहीं है। उसके लिए कुछ सामाजिक सिद्धांतों की आवश्यकता होती है। इसी उद्देश्य से इनाक जी ने कुछ कहानियाँ लिखीं। वे हैं- संस्करण, एदि गम्यम, इदें न्यायं आदि। उनकी कहानियों का लक्ष्य है - दलित शोषण के विरुद्ध लड़ना । इसी उद्देश्य से इनाक जी ने कुछ कहानियाँ लिखीं। वे है संस्करण, एदि गम्यं, इदें न्यायं आदि। उनकी कहानियों का लक्ष्य है दलित शोषण के विरुद्ध लडना। अच्छे साहित्य के प्रचार प्रसार से समाज में सौहार्द बढ़ता है, दूरियाँ कम होती है और समाज उन्नति करता है। 
उपसंहार :
पद्मश्री इनाक जी सामाजिक दृष्टि रखने वाले महान व्यक्तित्व है। उनके व्यक्तित्व में जो मोहता रही है, वह हर किसी को सहज ही आकृष्ट कर लेती है। वे अत्यंत सरल, स्पष्टवादी तथा प्रदर्शन से रहित खुले विचार के व्यक्ति हैं। इनाक जी रचनाओं में अध्यापक उदारवादी के रूप में नजर आते हैं, क्योंकि इनाक जी पर अपनी गुरु देवदास जी के प्रभाव अधिक है । अतः इनाक जी देवदास जी को “त्रिद्रव पताकं” 2008 नामक रचना समार्पन किया है। यह समर्पण सभा भी अपने आप आयोजन करवाके समर्पित किया गया। मानव जीवन को सही रास्ते पर ले जाने वाले ही है मूल्य। अगर मानव सुख पूर्ण और आनंदमय जीवन जीना चाहता है तो, कतिपय मूल्यों का होना अनिवार्य है। आचार्य इनाक जी समाज में बढ़ती हुई विषमताओं का खंडन करते हैं। आजकल समाज में मानवीय मूल्यों का जो ह्रास हो रहा है, उसके प्रति अपना दुख रचनाओं के माध्यम से प्रकट किया है। 

संदर्भ-ग्रंथ :
1.नान्ना – आचार्य कोलकलूरि मधुज्योति
2. आचार्य कोलाकालुरी इनाक साहिती समालोचनम्


MASIPOGU CHINNA MAHA DEVUDU
(MA.,B.ed, UGC NET, AP SET, CTET, AP TET)
Guest lecturer in Hindi
KVR govt Degree college for women (A), Kurnool.
Cell: 7702407621
Mail: chinnamahadeva@gmail.com







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