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अल्लसानी पेद्दना की मनुचरित्रा में मानवीयता की उद्गम -महादेव

 अल्लसानी पेद्दना की मनुचरित्रा में मानवीयता की उद्गम  -महादेव

   मनुचरित्रा काव्य मानवता की उद्भव को एक कारण है। अल्लसानी पेद्दना ने 16 वीं शताब्दी में “मनुचरित्रा” लिखा था। इस काव्य को विजयनगर साम्राज्य के राजा श्री कृष्णदेवरायलु को अंकित किया गया है। यह ग्रंथ लिखने की मुख्य उद्देश यह है कि विजयनगर साम्राज्य के महाराजा श्री कृष्णदेवरायलु के काल में भारत प्रमुख रूप से दक्षिण भारत सुरक्षा, सुख , आनंदमयी  के रूप में गुजरते  थे। याने न भूख,न नंगे, न रोग, न मकान , न आपत्तियाँ, न अकाल आदि विपत्तियों से दूर रहते थे। विदेशी राजाओं का आंदोलन, युद्ध होने का भय नहीं था। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विजयनगर साम्राज्य की पहचान से सभी राजाओं को परिचित हो गए। इसलिए कोई भी राजा युद्ध करने या लड़ाई करने के लिए तैयार नहीं थे । क्योंकि विजय नगर साम्राज्य में धन संपत्ति , सेना संपत्ति, युद्ध सामग्री आदि अधिक थे। उस काल में अन्न, मोती, हीरा आदि को इकट्ठा करके बाजारों में बेचते थे। इसका मतलब है लोगों के पास न अन्न कमी थी, न धन की कमी थी। इसके कारण जनता में आलस , भोग विलास आदि बढ़ गया थे। उस परिस्थितियों को राजा श्री कृष्णदेवरायालु देखते हैं। फिर सोचता है कि जनता आलसी , भोग विलासी हो गए हैं। आलस , भोग विलास गलत नहीं मगर लोगों में भक्ति भावना,मानवीय संबंध, मानवता ,मानवों का स्वभाव आदि कम नहीं होना चाहिए। हमने आदर्श पुरुष श्री राम को देखा है वैसे जीवन सभी लोग बीतना है। इसलिए किसी भी तरह यह आलस की भावना , भोग विलास की भावना लोगों की अंदर से निकाल कर भक्ति भावना ,ठमानवता भावना आदि उनके मन में भरना है। यह बात बोल कर श्री कृष्णदेवरायालु ने राज कवि अल्लसानी पेद्दना से सुझाव मांगता है। तब अल्लसानी पेद्दना थोड़ी देर सोच कर कहता है कि मैं एक ग्रंथ लिखूंगा, उसको पढ़ कर सभी लोग भक्ति भावना, मानवता भावना को अपने मन में से जगायेंगे। उस तरह लिखा गया ग्रंथ ही यह मनुचरित्रा है।

                हमें प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि 16 मनु थे। (हिंदी साहित्य के प्रमुख रचनाकार जयशंकर प्रसाद जी  के महाकाव्य कामायनी में नायक मनु है)। उस 16 मनुओं में सरोचीश एक मनु थे। उस मनु से जो जन्म लिया गया है वह मानव कहलाता है। अतः मानव मनु से जन्म लिया गया है। मनु सरोचिश से जन्म लिया हैइसलिए इस ग्रंथ को सरोचिशा मनु संभवम् भी कहते हैं। मनु चरित्रा ' काव्य में प्रमुख रूप से दो पात्र है , वे प्रवराख्युडु, वरुनिधिनी हैं। इसमें 5 अंक(भाग) हैप्रथम से लेकर  तृतीय अंक तक प्रवराख्युडु,वरुनीधिनि के बारे में है। चौथा,पाँचवा अंकों में उसके संतान के बारे में लिखा गया है।

            प्रवराख्युडु आदर्श पुरुष, आस्तिक थे। प्रवराख्युडु हर दिन यज्ञ करते हैं, 10 शिक्षकों की शिक्षा देते हैं । इन्होंने आदर्श विवाह भी कर लिया है। एक शब्द में कहना चाहिए तो एक संत, उत्तम पुरुष कह सकते हैं। प्रवराख्युडु को एक आदत है कोई भी तीर्थ यात्रा, देश पर्यटन पूरा करके आए हुए तो उनको अपने घर बुलाकर खाना खिलाकर उनकी यात्रा के बारे में, देखा हुआ प्रदेशों  ,वहां की परिस्थितियाँ, उसमें विशेषता आदि के बारे में पूछताछ करते रहते हैं ।उस तीर्थ स्थल के बारे में मन में सोच कर प्रफुल्लित हो जाते थे। बाकी समय में बच्चों को दीक्षा देते रहते थे ।यहां प्रवराख्युडु एक नियमबद्द जीवन गुजारते थे।  कुछ लोग तो इनको नैतिक मूल्यों का एक उदाहरण मानते थे। एक बार सिद्धूडु नामक एक युवक हिमालय पर्यटन करके आया था, उनको प्रवराख्युडु ने अपने घर बुलाकर खाना खिला कर हिमालय के बारे में पूछा था। सिद्धूडु ने हिमालय का वर्णन, उनकी विशेषता ,विद्यालय पर्वत ,गंगा नदी आदि के बारे में समुचित ढंग से कहा गया । तब प्रवराख्युडु ने पूछा है कि इतनी छोटी उम्र में आप इतने सारे प्रदेशों का पर्यटन कैसे किया? इस प्रश्न को उत्तर देते हुए सिद्धुडु कहते है प्रवराख्युडु जी इतनी छोटी उम्र में इतने सारे प्रदेशों का पर्यटन कर सका क्योंकि मेरे पास एक पाद लेपणम' है उसको दोनों पांवों को लगाकर आंखें बंद करके एक जगह के नाम स्मरण करने तो उस जगह तुरंत पहुंच जाएंगे। तुरंतु प्रवराख्युडु वह पाद लेपणम  देने को मांगता है सिद्धूडु भी उस पाद लेपण प्रवराख्युडु के पाओं को लगाता है। प्रवराख्युडु संपूर्णानंद से हिमालय जाने की फैसला ले लेता है । तुरंतु प्रवराख्युडु हिमालय पहुँच जाता है। वहाँ जमीन पर न उतर कर आसमान से हिमालय के सुंदरता को देखता है और मुग्ध हो जाता है । वहाँ शेर ,हिरणी, पक्षी, सुंदरमयी प्रकृति आदि को देखकर हैरान हो जाता है और सोचता है कि आसमान से जमीन पर उतर कर देखने तो और संतुष्ट हो जाएंगे। तुरंतु जमीन पर उतर कर संध्या समय तक पूरा बार-बार देख कर शाम को घर जाने के आंखें बंद करके मन में फैसला लेता है। मगर नहीं जा पाता है। क्योंकि पाओं  को लगाया गया पादलेपण हिमालय की हिम के कारण फिसल कर हिम में लीन हो गया। तब प्रवराख्युडु घबराकर पूरा जंगल चक्कर काटता है। लेकिन घर जाने की रास्ता नहीं ढूंढ पाता है । फिर कुछ दूर जाने के बाद एक जगह में एक तरफ सुंदरी की खुश्बू आती हैं। उसकी खुशबू की ओर जाकर देखने तो वहाँ एक परी जैसे सुंदरी दिखती है। वह वरूधुनी है। उसके पास जाकर बोलता है कि मेरा गांव अरुणाचस्पदपुरम, मैं हिमालय देखने आया हूँ। मेरी गलती के कारण पादलेपण हिम में लीन हो गई। । अब मेरा गांव को कैसे जाना है, मुझे रास्ता नहीं मालूम, जरा रास्ता बता दीजिए मैं चला जाऊंगा। पर वरुधिनी प्रवाराख्युडु के रूप, रंग को मुग्ध होकर, जानबूझकर रास्ता के बारे में थोड़ा बताते हुए झगड़ा करके भटकाने की कोशिश करती है। कुछ देर के बाद प्रेम की इजहार भी करती है। मगर प्रवराख्युडु अस्वीकार करते हुए अपनी पत्नी, शिष्य, माता-पिता के बारे में जिक्र करता है, उसकी खाना-पीना सभी कार्य मैं ही संभालना है। अगर मैं नहीं जाने तो वे लोग भूखे रहेंगे। वैसे मुझे प्रातः काल, संध्याकाल में पूजा करना, शिष्यों को शिक्षित करना आदि काम भी है। इसलिए आपसे विवाह नहीं कर पाता हूँ। यह पाप मुझसे मत करवा दीजिएगा। अचानक वरुधिनी क्रोधित होकर पूछती है

वरुधिनी    : तुम यज्ञ , पूजा आदि क्यों करते हो ? 

प्रवराख्युडु : स्वर्ग प्राप्ति के लिए।

वरुधिनी  : स्वर्ग में जाकर क्या करोगे? रंभा, उर्वशी, मेनका आदि सुंदरीमयी कन्याओं  को, उनकी नृत्य देखकर आनंद विलास, मधहोश में दिन-रात बीतोगो? वह आनंद को मैं इधर ही दिखाऊंगी।  नजदीक आ जाओ ।

प्रवराख्युडु : नहीं ।

वरुधिनी : तुम अंधे हो? रोशनी की मूल नहीं जानते हो? अंधेरा में रहकर सूखी हुई बर्तन को छांट कर जीने वाले हो तुम ? तुम क्या जानो रोशनी, उजाला की मूल? 

 उपर्युक्त जैसे निंदा करके भी अपनाने की कोशिश करती है। तब भी प्रवाराख्युडु मुझे मेरा गांव जाना है अगर नहीं गया तो घर में लोग परेशान होंगे। इसलिए अब जाकर फिर लौट कर आऊंगा माने कहता है। वरुधनी प्रवराख्युडु के बातों पर यकीन करके उसको जाने देती है। यहां प्रवराख्युडु वरुधिनी से बचके निकलने के लिए झूठ बोलता है। प्रवराख्युडु वहाँ से दूर आने के बाद अग्निहोत्री को पूजा करता है और वरदान मांगता है कि मैं आपको हर दिन निष्ठा के साथ पूजा करता हूँ, आपको ही स्मरण करता रहता हूँ, मेरी पूजाएं आप सच माने तो मुझे मेरे घर जाने की रास्ता दिखाइए । भगवान भी तुरंतु रास्ता दिखाता है। उस रास्ता पकड़ कर घर पहुंच जाता है। यहाँ घर आने के बाद प्रवराख्युडु वरुधिनी के बारे में सोचता रहता है। वहां वरुधिनी भी प्रवराख्युडु के बारे में चिंता करती रहती है। यह पूरा मामलों को माया गांधर्वुडु देखकर मौका के लिए इंतजार करता रहता है। यह माया गांधर्वुडु कुछ दिन पहले वरुधिनी के सुंदरता के ऊपर मुग्ध होकर पाने के लिए कोशिश करता रहता है। बल्कि वरुधिनी लात मारती रहती है और बोलती है कि मुझे तुम पसंद नहीं हो , मेरे सामने मत आया करो। माया गांधर्वुडु इस अपमान से क्रोधित होकर उससे बदला लेने के लिए कोशिश करता रहता है। उसको अब मौका मिल गया। प्रवराख्युडु जाने के बाद सोचता है कि प्रवराख्युडु रूप धारण करके वरुधिनी के पास जाकर उसको अपना वश करने तो मेरा बदला, इच्छा दोनों पूरा हो जाएंगे। उसी वक्त में माया गांधर्वुडु को अपने वंश के शाप स्मरण में आती है। वह है गांधर्व वंश में किसी की रूप धारण करना चाहिए तो कर सकते हैं बल्कि किसी महिला के साथ श्रृंगार के संभोग समय में तो अपनी असली रूप ही दिखाई देगी। वहाँ किसी तरह माया काम नहीं करेगी। इस शाप को ध्यान में रखकर प्रवराख्युडु के रूप धारण करके वरुधिनी के पास पहुंच जाता है।वरुधिनी भी प्रवराख्युडु को देखकर बहुत खुशी के साथ बातचीत करती है, श्रृंगार संभोग के लिए भी तैयार करती है। संभोग में जाने से पहले प्रवराख्युडु रूप धारण किया गया माया गांधर्वुडु वरुधिनी को शर्त लगा देता है कि हमारे श्रृंगार संभोग आरंभ से अंत तक अपनी आँखें बंद करके रखना चाहिए। वरना मैं अपना घर चला जाऊंगा। वरुधिनी सोचती है कि मुझे प्रवराख्युडु चाहिए इसलिए आंखें बंद करने तो क्या होगा माने वरुधिनी भी उस शर्त को मान लेती है। श्रृंगार संभोग में भी प्रवराख्युडु पर प्रीति, प्रेम से आँखें नहीं खोलती है। उस मिलन के बाद बिना बताकर माया गांधर्वुडु चला जाता है। कुछ दिनों के बाद वरुधिनी को सरोची नामक बालक जन्म लेता है। इस सरोची में भयंकर राजनीति, धर्म, पराक्रम ,धैर्य, सेवा गुण, अच्छाई- बुराई, श्रृंगारिकता आदि सभी विभिन्न भावनाओं, लक्षण निहित रहते हैं।

          यहाँ एक संदेह, शंका हमारे मन में उठता है कि सरोची में आधा के ऊपर लक्षण प्रवराख्युडु के और कुछ लक्षण माया गांधर्वुडु के है। यहाँ हम विज्ञान शास्त्र को याद करना या जानना आवश्यक है। वह कभी भी श्रृंगार संभोग समय में कमरा में श्री राम की फोटो, श्री कृष्ण की फोटो या श्री कृष्ण की बचपन की फोटो, या किसी प्यारे बच्चों की फोटो दीवार पर लटकाते हैं। क्योंकि श्रृंगार के समय में महिला किसको ज्यादा स्मरण करती है एवं किसको ज्यादा देखती है। उसकी संतान उन लक्षणों में अधिक लक्षणों के साथ जन्म लेता है , और कुछ उनकी पिताजी की लक्षण के साथ भी जन्म लेता है। वैसे ही इस मनु चरित्रा में वरुधिनी भी श्रृंगार संभोग के समय में प्रवराख्युडु को स्मरण करती रही है। इसलिए प्रवराख्युडु के संपूर्ण लक्षणों के साथ-साथ माया गांधर्वुडु के कुछ लक्षणों से सरोची जन्म लिया है। यह सरोची पूरा भूमंडल पर राज करता है सरोची में राजनीति , पराक्रम, सेवा, न्याय के साथ-साथ विलास प्रियता लक्षण भी है। यहाँ राजनीति, सेवा प्रवराख्युडु से मिलता है, विलास वरुधिनी से मिलता है ।ये दोनों की मिलन की रूप सरोची है। इस सरोची को सरोचीश मनु जन्म लेता है। उस सरोचिश मनु को मानव(हम) जन्म लिए है।

         वास्तव  में हम देखते है कि कहीं भी बच्चे गलती करने तो क्रोधित होकर पूछते हैं तेरा बाप कौन है? कैसे जन्म लिया? आदि तरह-तरह के अधिक सवाल उठाते हैं। यहाँ जानकारी के लिए पूछा गया सवाल नहीं, याने अगर पिता के चरित्र सही, अच्छा हो‌ तो उसके संथान भी अच्छा  होंगे। अर्थात बिना बताए सीधे पिता के चरित्र को डांट रहे हैं। यह सारी बात चरित्र का महत्व के बारे में कहने के लिए बतानी पड़ीं। यह बात श्री कृष्ण देवरायलु काल के जनता को सावधान रहने के लिए बताया गया है। 

    यह ग्रंथ पढ़कर हमारे पूर्वजों के चरित्र जानकार तबकी- अबकी परिस्थितियाँ तुलना करके जैसे भक्ति भावना, दैविक चिंतना , यज्ञ करना , पूजा करना, वादा निभाना, सेवा करना, मानवता आदि सभी भावनाओं को स्मरण करके आलस, भोग विलास छोड़कर आदर्शमयी जीवन  जीयेंगे। इस तरह जीवन जीने के लिए एक प्रेरणा देने की श्री कृष्ण देवरायलु ने अल्लासानी पेद्दना के द्वारा एक नीति कथा रूपी ग्रंथ लिखवाया गया था। वही मनुचरित्रा है।

        इसके द्वारा हम कह सकते हैं श्री कृष्ण देवरायलु काल की आलस, भोग विलास को छोड़ने के लिए साहित्य भी एक बड़ी कारण, साधन हुई है। इस तरह मनुचरित्रा काव्य मानवीय मूल्यों को जगाने के लिए एक कारण बनी है । आत: मनुचरित्रा मानवों में मानवीयता की भावना जगाने वाला एक ग्रंथ माने मेरे गुरुवार्य जि. रामलिंगा रेड्डी जी मानते हैं।





  मासिपोगु चिन्ना महादेवुडु [ M.A(B.ed),UGC NET,AP SET,CTET,APTET] 

                               GUEST LECTURER IN HINDI

                      K.V.R GOVT DEGREE COLLEGE, KURNOOL.

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