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अन्नदाता सुखिभाव:
भगवान के बाद कोई विधाता है तो वह किसान ही है ।
कोई भी हमें मदद करने तो उनको धन्यवाद कहते हैं। हम धन्यवाद बोलना भी आसान नहीं है। अंग्रेज वाले आकर थैंक्स, सॉरी आदि नई पदों को सिखा कर गये है। उसके अलावा उनसे हमें बिना स्वार्थ से कुछ मिला नहीं है, माने कई बड़े लोग कहते हैं। वे विदेशी है इसलिए हम उसके ऊपर सोचने के लिए जोर नहीं देने तो भी कोई बात नहीं है, मगर हमें हमारे स्वदेशी भारतीयों ने पालन करते वक्त में भी किसान/अन्नदाताओं को अनेक कष्ट झेलना पड़ रहे हैं। यहां यह बात कहना उचित है कि सिर्फ हमें नहीं सारे दुनिया को अब नई तरह की लोग पालन कर रहे हैं। बस नाम अलग है। दुनिया का नक्शा सॉरी गूगुल मानचित्र में महाद्वीप बदला होगा , किंतु पालन में किसान को उचित स्थान कभी भी नहीं मिला है।
बुजुर्ग लोग, कई बड़े लोग कुछ भी खाने के बाद अन्नदाता सुखिभाव: कहते हैं । वह उनका आदत है। धन्यवाद कहना सहायता/दान को स्मरण करते हुए आशीर्वाद देना उनका उद्देश्य है। वह आशीर्वाद सचमुच में अन्नदाता को मिल रहा है या नहीं यह सोचने वाली बात है। अब यह सवाल मन में उठता है कि वास्तव में अन्नदाता कौन है? खाना पकाने वाला या खाना बांटने वाला या सामग्री खरीद कर लाने वाला अथवा अनाज उगाने वाला किसान? अगर किसान है तो अन्नदाता वास्तव में खुशी से जी रहा है याने सवाल उठता है। आजकल घटे संगठनों को देखकर छोटे बच्चों ने भी तुरंत कहते हैं कि किसान दीन दशा में है। एक बड़ा आदमी सामाजिक वीडियो में कह रहा है कि “फसल उगाने वाला के साथ-साथ उस फसल को जनता तक लाने वाले दलाल,व्यापारियों आदि सब लोग अन्नदाता ही है, अतः उनकी अच्छाई-बुराई सरकार देखना है”। उस तरह बदले समय, बदले जनता से कुछ परिभाषाएं कई पदों के अर्थ,कई सिद्धांतों की भावनाएं बदलती रहती हैं। वैसे खुशी के अर्थ भी बदल रही है। तेरी खुशी ही मेरी चाहत, तेरे लिए जितनी बोझ उठाने तो भी मुझे खुशी ही होती है। माने पहने तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता है।
यहाँ डेबिट , क्रेडिट सूत्र अपनाने तो किसी का लाभ, किसी और का नुकसान/नष्ट है । किसी का नष्ट किसी और के लाभ है। इस तरह व्यापार शास्त्र के अनुसार शब्दार्थ भी बताना पड़ता है । खाना खिलाने वाले किसान को आँसू बहाने तो महापाप माने एक ओर कहते हुए , दूसरी ओर उनके खिलाफ बिल लाना धन्यवाद की सही अर्थ देगा या नहीं वे ही सोचना चाहिए । आंदोलन किए जा रहे किसानों पर टीयर गैस जैसे बाप वास्तु उड़ा कर उनकी आंखों में आंसू बहवाकर बिखरा रहे हैं । वैसे किसान बिना पानी, बिना बीज, पर्याप्त फसल न उगना, उगने तो भी काफी कीमत न होना आदि पीड़ाओं से परेशान होकर बहते आंसुओं को यह ब्याज जैसे अलग दर्द दे रहे हैं । खेती करने वालों को मदद करना आवश्यक है या अपनों को ही मदद कर के कर्ज चुकाना आवश्यक है सही वक्त जाना था बी अपना रंग दिखा कर अपने हिसाब से किसको क्या किस तरह कहना है वैसे ही कहेंगे क्योंकि जनता को ईट का जवाब पत्थर से देना अच्छी तरह जानती हैं।
वास्तव में अन्न माने शब्द का अर्थ बदल जाने दो उसकी भावना मूल अर्थ भी बदल जाते हैं सत्ता ही भोजन हो जाने दो सत्ता पर बिठाने को खर्चा उठाने वाला सीन अन्नदाता बन जाता है। सत्ता पर बैठने के बाद उसकी व्यापार में सहायता देना है कर्ज चुकाने का तारिका है। इसलिए वे लोग एक दूसरे को सुखी बा कहते हुए काम करते करवाते हुए आगे बढ़ते हैं धन भी करते जाते हैं दानदाता सुखी बाबा कहना भी शायद ठीक होगा अब अन्नदाता भी सुख को अधिक मात्रा में नहीं मांग रहा है उन्होंने सिर्फ विजय वे अंकुर होने के बाद थोड़ा सा पानी पुष्पा ने आने के लिए कुछ घंटों का बिजली आदि ही मांग रहे हैं बिजली भी 24 घंटे कभी नहीं मांगा फसल सूख जाने के बाद उसको बेचकर करोड़पति बनने की सपना कोई भी किसान नहीं देख रहे हैं वह केवल उनकी परिश्रम की फल किया गया करजू में पर्याप्त कीमत ही मांग रहे हैं।
उसमें किसान को 100 किलो सोना मोती रंगीन बड़े-बड़े महल में महंगी कपड़ा चमके ले सोना काश खाना आदि वो हमसे जिंदगी जीना वे नहीं चाहते हैं।
किसी भी चीज को बनाने वाले अपनी चीज की कीमत नीचे करने वाला क्षेत्र कुछ है उसमें खुशी को भी शामिल करना है तब भी किसानों ने थोड़ी सी चयन लेकर जिंदगी बिता पाएंगे वैसे भी किसान उपजे फसल को कीमत संबंधित कौन निश्चय करता है माने पूछताछ करने तो वहां बड़ी अजीब की बात मालूम पड़ी है बीज को बोलना भी ना जाने वाला बीज को बोलते वक्त एक बार भी नहीं देखने वाला है अर्थशास्त्र ही पढ़ कर ठंडी हवा छाया सूट जूते पहनकर गर्मी में बारिश में असम करके फसल बजाया गया किसान पर या फसल पर कीमत निश्चय करता है।
बड़ा नौकरी छोड़कर किसानों के पास जाकर उनके हालत समझने को सिनेमा नहीं यह जिंदगी है मेरा वह चित्र किसानों के बारे में है माने कहने वाला अभिनेता व पूंजी घूमने भी किसान आंदोलनों पर आवाज उठाने को डर जाते हैं जिस तरह किसान को सिनेमा हवाओं में अखबारों में ही तारीफ करते हैं मगर वास्तव में किसान के कष्ट नष्ट में सहायता देकर साथ देने वालों को देखने के लिए उदाहरण के लिए भी बहुत कम मिलेंगे इसलिए किसान भी अपनी हालत की रंग किसान आंदोलन के रूप में दिखा रहे हैं और अधिक मात्रा में दिखाना चाहिए अभिनेता सोनू सूद ही खलनायक रूप अभिनय कर बी नायक जैसे मुंह खोल कर किसानों के लिए आवाज उठा रहे हैं। अब भी अन्नदाता विषय के संबंध में थैंक्स कहने वाले सर्दी से कांप रहे हैं कुछ लोग सांत्वना दे रहे हैं मगर जिनको सारे क्षमा के बाद कहना था वह नहीं कह रहे हैं किसान लोग जाता तो है परंतु जान लेने के लिए नहीं आए वह विनम्र से कहते हैं कि भलाई करे ना करे मगर बुराई तो बिल्कुल ना करें अतः उनके दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए अन्नदाता सुखिभावा माने कहकर जितना हो सके उतना मदद करने में हम सबका बलाई निहित है।
सर्वे जना सुखिनो भवंतु
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