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जिंदगी का रस

 


जिंदगी का रस


जवानी से हारकर

क्षुब्ध अशांत होकर

हिंसा पर उतारकर

निराश हताश होकर

हुआ हूँ तनाव ग्रस्त।

मुझमें प्रेम विरह

खुली भट्टी की तरह 

भकभक जल रही है 

एक ओर दिमाग का 

प्रगति के ओर खुले आह्वान हैं 

दूसरी ओर मन की 

तनाव की ओर खुले आह्वान हैं

इन कई चुनौतियों से 

असमंजस में जूझ रहा हूँ ।

जब तुम्हारा व्यवहार स्मरण आती है

तो बचता है तनाव और अवसाद

असफल रहने का दुःख 

संतुष्टि खोजते खोजते

 मन करता है कि 

पश्चिम सभ्यता अपनाने को

नशे की ओर आगे बढ़ाने को 

काम सुख की भोगने को

परंतु जब सहज जिंदगी का रस

याद आता है तो

 युवक होने की पात्र के साथ-साथ 

बेटा, भाई, छात्र एवं शिक्षक आदि 

पात्र भी अभिनय करने की 

मिलती है आमंत्रण।।

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