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दीया जला रहा हूँ आंधी में

                  दीया जला रहा हूँ आंधी में 

मैं जानता हूँ अंधेरा में 
दीया जला रहा हूँ ।
फिर भी दिया जलाने 
को ही मन लगता है ।
कहाँ दिया जलाना है , कहाँ नहीं 
इतना भी नहीं जानता हूँ ।।
मेरा मन भी चंचल हो गई है 
कभी-कभी जलकर ,
रोनक , महक बढ़ाने को 
कदम आगे बढ़ाती है ,
कभी-कभी जलकर बुझ जाने से 
ज्यादा, बुझकर शांत से रहना 
अच्छे माने सोचती है ।
इस असमंजस में फिर 
कदम आगे बढ़ाता हूँ 
दीया जला देता हूँ।।


                -  महादेव

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