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MahaabhojMD
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कहीं भी रहो कैसे भी रहो
हम , मैं एवं तुम हो जाना तो भी
तेरी भलाई ही मेरी चाहत है
इसलिए तुमसे दूर जी रहा हूँ
जिंदा लाश बन कर ।।
जो सोचते हैं वह होता नहीं
जो होते हैं वह सोचते नहीं
जो कुछ हो रहा है वह सब
हमारे अच्छाई के लिए माने
मानना ही मानव की शुभकाम है
अतः तुमसे दूर जा रहा हूँ ।।
मेरे बराबर माने सोच कर
दिल दे कर बैठा था
मगर तुम्हारा स्तर उच्च माने
नहीं समझ पाया तेरी व्यवहार से …
मेरे मन को मंदिर बना कर
तुझे मेरी देवता मानकर
पूजा करता था
तुम ही न रह पाकर दूर-दूर भागकर
अनसुना अनदेख कर रही हो।।
तेरी भलाई चाहने वाला हूँ वह भलाई अगर
तुझे छोड़ना ही है तो नहीं छोड़ सकता हूँ क्या
तेरे लिए कुछ भी करने का तैयार हूँ पगली
मन देना सच है तो
उसकी भलाई चाहना ही
उसकी सबूत है ।।
अब सदा मेरी दुआ यही है कि
तेरे सारे सपना सकार हो
मेरी स्मृतियाँ तुझ में न हो
सदा खुश रहो, मुस्कुराते रहो
अलविदा मेरे दिल की धड़कन अलविदा।।
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