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पल – पल, हर पल व्यथा को देखा,
एक रोटी पे दिन कटते देखा,
खेत की झोंक में ढलते देखा,
हाँ जनाब, उसे मरते देखा ।
दिन – ब – दिन दीन जाते देखा
खेत का पानी रखते देखा,
अपने आंसू तक वो गिरते देखा
हाँ जनाब, उसे मरते देखा ।
साल – साल बर बदलते मौसम
बार – बार उसे रुलाते देखा,
न बारिश पे उसे गरजते देखा
हाँ जनाब, उसे मरते देखा ।
खेत हात में आते ही
हातों – हाथ उसे छीनते देखा,
हमदर्द पर हाथ थामे
साहूकार की खुदगर्जी देखा ।
बिटिया की ब्याह के बारे में
हँसते, रोते हसरतें देखा,
दर – ब – दर घूमे फिरे
कर्जक्वाह खेतिहर को देखा ।
कर्ज चुकाने काम में आये
हर ख्वाहिश को घटते देखा,
ज़हर की शीशी हाथ में थामे
दर्दीले उस पल को देखा,
हाँ जनाब, उसे मरते देखा ।
जलती किसान की चित में ही
ढलते – ढलते देश को देखा,
हाँ जनाब... मैं .. उसे .. मरते .. देखा .. ।
लेखक : సतीsh
Publisher : YourQuote.in & Mahaabhoj blog
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