पर्वत प्रदेश में पावस सारांश
इस कविता के कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी है। उसका जीवन काल 1900-1977 माना जाता है। उनसे रचित कविता का नाम पर्वत प्रदेश में पावस । इस कविता में -
- वर्षा ऋतु में पर्वतीय क्षेत्र में प्रकृति हर पल अपने रूप को बदलती है।
- मेखलाकर पर्वत हजारों सुमन रूपी आँखों से नीचे तालाब में अपने रूप को देख रहे हैं।
- झाग भरे झरने झर-झर नाद कर रहे हैं।
- महत्वकांक्षाओं से भरे पेड बिना पलक आकाश की ओर देख रहे हैं।
- अचानक बादलों के आगमन से मानो पर्वत कहीं उड गये हैं।
- वर्षा की तेज से ऐसा लगता है कि धरती पर आकाश टूट पड़ा हो ।
- भय से विशाल शाल वृक्ष जमीन में धंस गये हैं।
- वर्षा की तेजी से आये धुआँ मानो तालोबों में आग लगा दी गई है।
- यह सब देख लगता है कि इंद्र अपने जादू का खेल खेल रहे हैं।
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