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सच है सनम

 सच है सनम सदा रही मन, तेरी सपनों में वैसे भी संपूर्ण नींद सोकर भी हुए बहुत साल  हर दिन सोना पडरहा है जबरदस्ती से  न जाने कितने सोचुं पर आशिक़ी सुनने तो देखने तो बोलने तो पढ़ने तो लिखने तो सनम तेरी कसम सिर्फ तुम ही याद आती हो न मिलोगी माने जानने के बावजूद तेरे फोटो देख कर मन को शांत कर देता हूँ ।।

पर्वत प्रदेश में पावस सारांश

 पर्वत प्रदेश में पावस सारांश 


इस कविता के कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी है। उसका जीवन काल 1900-1977 माना जाता है। उनसे रचित कविता का नाम पर्वत प्रदेश में पावस । इस कविता में -

  1.  वर्षा ऋतु में पर्वतीय क्षेत्र में प्रकृति हर पल अपने रूप को बदलती है।
  2.  मेखलाकर पर्वत हजारों सुमन रूपी आँखों से नीचे तालाब में अपने रूप को देख रहे हैं।
  3. झाग भरे झरने झर-झर नाद कर रहे हैं।
  4.  महत्वकांक्षाओं से भरे पेड बिना पलक आकाश की ओर देख रहे हैं।
  5.  अचानक बादलों के आगमन से मानो पर्वत कहीं उड गये हैं।
  6.  वर्षा की तेज से ऐसा लगता है कि धरती पर आकाश टूट पड़ा हो ।
  7. भय से विशाल शाल वृक्ष जमीन में धंस गये हैं।
  8. वर्षा की तेजी से आये धुआँ मानो तालोबों में आग लगा दी गई है।
  9. यह सब देख लगता है कि इंद्र अपने जादू का खेल खेल रहे हैं।

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